
गुरु की महिमा
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गर गुरु न होते इस जीवन में , हमको राह दिखाता कौन।
काले काले अक्षर किताब के, पढ़ना हमें सिखाता कौन।
काँटों भरी कठिन डगर में , चलना हमें सिखाता कौन।
तपा परिश्रम की अग्नि में नित ,कुंदन हमें बनाता कौन।
डूब जाता जब मन निराशा में, आस दीप जलाता कौन।
देकर भीतर से मजबूत सहारा, आगे हमें बढ़ाता कौन।
है कठिन अनुशासन की राहें ,सदमार्ग पर ले जाता कौन।
परोपकार की सार्थकता से ,परिचित हमें कराता कौन।
सही गलत उचित अनुचित का भेद, प्यार से समझाता कौन।
गीली मिट्टी से नन्हे बच्चों को, सुंदर स्वरूप देता कौन।
गुरु ही ब्रम्हा, गुरु ही विष्णु, सृजन का महत्व बताता कौन।
गुरु शिल्पकार, गुरु चित्रकार, हममें नव रंग भरता कौन।
मात पिता की सेवा करना, रिश्तों का मोल बताता कौन।
गुरु के सीख बिना इस जग में , जीना हमें सिखाता कौन।
गुरु के जैसा निःस्वार्थ भाव से, सिर पर हाथ रखता कौन।
किन शब्दों में मैं करूँ बखान , गुरू से बढ़कर होता कौन।
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