
आदरणीय शिक्षको,
मैं आज जिंदगी में हार चुका हूं। लेकिन जो भी थोड़ा बहुत मैं बन सका हूं। शायद उसका श्रेय भी आप सबको जाता है।जब भी कभी मुसीबत का सामना होता। मुझे झट से आपकी दी हुई, नसीहतें दिमाग में आती हैं।और मैं किसी हद तक करने में कामयाब हो जाता हूं।या फिर बच निकलता हूं। मैंने आपकी एक खुबी देखी थी।कि आप कभी भी लेट नहीं होते थे। हमेशा हर काम समय पर करते थे। शायद इसी लिए मैं कभी भी लेट नहीं हुआ।चाहे भाग्य ने मुझे हर काम से जिंदगी में लेट कर दिया। लेकिन मैं खुद हमेशा समय के अनुशासन में काम करता रहा।
हर काम को ठीक ढंग से करने की कोशिश की।चाहे कैसे भी हालात हों।कभी अपने असूलों से नहीं डिगा।चाहे परिस्थितियां कैसी भी असुविधा वाली हों।आगे भी इन्हीं असूलों पर कायम रहते हुए। जिंदगी में आगे बढ़ता रहूंगा। आपका एक और असूल जो मुझे भाता था।कि आप बहुत मेहनती थी। हमेशा डटे रहते थे। मैं भी आपके पदचिन्हों पर चलता हुआ।ऐसे ही आगे बढ़ रहा हूं।लगता है। परिस्थितियां बहुत विकट हैं। लेकिन फिर भी अनगिनत कठिनाइयों के बावजूद भी आगे बढ़ रहा हूं।
धन्यवाद।
आपका शिष्य,
अनिल कुमार जसवाल
राम निवास,
गगरेट(हि०प्र०)
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