
Share0 Bookmarks 72 Reads0 Likes
दुनियादारी से निकालकर,
मन की डोर काव्य से गिरहें कस रही है।
कोई दुःख अब दुःख नहीं देता,
धीरे धीरे ये कविताएं मेरा जीवन रच रही हैं।
No posts
No posts
No posts
No posts
दुनियादारी से निकालकर,
मन की डोर काव्य से गिरहें कस रही है।
कोई दुःख अब दुःख नहीं देता,
धीरे धीरे ये कविताएं मेरा जीवन रच रही हैं।
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments