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दुनियादारी से निकालकर,
मन की डोर काव्य से गिरहें कस रही है।
कोई दुःख अब दुःख नहीं देता,
धीरे धीरे ये कविताएं मेरा जीवन रच रही हैं।
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दुनियादारी से निकालकर,
मन की डोर काव्य से गिरहें कस रही है।
कोई दुःख अब दुःख नहीं देता,
धीरे धीरे ये कविताएं मेरा जीवन रच रही हैं।
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