फ्लैशबैक...
‘हां एना, माना मैंने कि तुमको अभी अपने घर का कमरा बहुत ही प्यारा है... लेकिन सोचो एना, एक घर होगा तुम्हारा जिसे तुम अपनी पसंद से सजाओगी । कौनसे परदे लगाने हैं, कौनसे रंग की दीवारें होंगी, कौनसे पौधे बालकनी में और कौनसे घर के अन्दर... और एक जगह तुम्हारी सारी ट्रॉफी, सारे स्केच, सारी पेंटिंग्स, सब कुछ तुम्हारा, तुम्हारी पसंद का होगा!’
‘हां... हम बालकनी में विंड-चाइम भी लगायेंगे...’
‘हां एना, जैसा तुम बोलो! जल्दी से शादी हो जाए, और तुम मेरे पास चली आओ! फिर तो हमारा अपना मकान होगा...’
‘मकान नहीं, घर होगा—अपना घर । हम दोनों का अपना घर!’
आज...
‘आदि, तुमने किचन का कुछ सामान हटाया क्या? मैंने जमाया तो था? तुमने मेरी ज़रूरत का सामान ऊपर रख दिया, मेरा हाथ नहीं पहुँच रहा है अब...’‘हां,
मेरे घर पर वो सामान स्टोर जैसे ऊपर ही रखते हैं । हम एक सीढ़ी या स्टूल खरीद लेंगे ताकि उस पर चढ़ कर तुम खुद उतार लो ।’
‘आदि, तुमने तुम्हारी अलमारी जमा ली? यहाँ शिफ्ट होने के बाद मेरा इतना सामान है, सोच रही हूँ कैसे जमाऊं...’
‘सुनो, तुम सारे कॉटन के कपड़े एक शेल्फ में, सिंथेटिक एक में, जीन्स दूसरे में रखना...’‘मैं सोच रही थी ऑफिस में पहनने के एक में, और घर के एक में रख लेती...आसानी रहती मेरे लिए ।’
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