
हम कट्टर मठाधीश हैं।
ऐसा हम मानते हैं।
हमें सबसे दिक्कत है।
और 'हम' ऐसे ही रहेंगे।
हमारे ज़माने में ही बस
काम सही से होता था
और हमारे जितना कोई भी काम नहीं करता।
न भूतो न भविष्यति।
ये कल के आये लोग हैं,
न सोच है न समझ है,
ऊपर से न जाने किस बात का टशन है।
हम जैसा कोई मेहनती नहीं।
ऐसा 'हम' मानते हैं।
हमें सबसे दिक्कत है।
और हम ऐसे ही रहेंगे।
वो पे-रोल पर है,
रत्ती-भर का काम नहीं।
वो मात्र कॉन्ट्रैक्ट पर है,
ज़माने भर की अकड़,
उसमें कोई कमी नहीं।
इसलिए हम सबकी आलोचना करते हैं।
हम देर रात भी काम करते,
पर हमारी कोई सुनता नहीं।
ऐसा 'हम' मानते हैं।
हमें सबसे दिक्कत है।
और हम ऐसे ही रहेंगे।
किसी ने अफसर के कहने पर कुछ खरीदा,
दफ्तर ही दिवालिया ही हो गया जैसे।
किसी ने खर्चे पर रोक लगायी,
भ्रष्टाचारी ही समझा है क्या हमें?
किसी ने कुछ हिसाब लगाया,
नौटंकी हैं सब।
किसी ने हिसाब से बचा एक्स्ट्रा बाँट लिया,
बेईमान हैं सब।
किसी ने मदद मांगी,
मक्कार हैं सब।
किसी ने अकेले कुछ कर दिखाया,
जुगाड़ है सब।
ऐसा हम मानते हैं।
हमें सबसे दिक्कत है।
और हम ऐसे ही रहेंगे।
खुले आम, खुली सोच रखते हैं हम ।
'महिलाओं से ही दफ्तर,
दफ्तर से ही हम।'
छुप कर लेकिन
सोचेंगे छोटा
महिला है आखिर,
कैसे कर पायेगी कभी कुछ बड़ा?
कर न पाए,
तो कहा ही था हमने।
कर दिखाया अगर,
तो किस्मत ही समझें।
ऐसा 'हम' मानते हैं।
हमें सबसे दिक्कत है।
और हम ऐसे ही रहेंगे।
~ दिल से समर्पित और जनहित में जारी
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