
घर की छत के नए कबेलु बदलने का वक़्त आ गया
अबकि बार बारिश जल्द आने वाली है।
कुछ दीवारों पर सीलन पिछले साल की अब तक ताजा है।
कुछ कमरो में रीसन और पानी की कुछ बुँदे इस साल भी
टपकेगी
।बादलों के तेज गरजने से माँ की नीद फुर से उड़ जायेगी।
कुछ कपड़े कल शाम से छत पर ही भूल गयी, सारे गीले हो जाऐगे।
वो पुरानी काली छतरी तेज आंधी में हाथ से छुट जाया करती है,
माँ के कमजोर हाथो से निकलकर हवा से बात करना चाहती है मानो।
माँ के बनाये पापड़ का कड़ाई कब से इंतजार कर रही है,
पिछली सर्दी में उसने ज्वार भी तो पीसाई थी।
इस साल भी पंखे में कपड़ो को सुखाना है,
धूप अब ना जाने कब निकलेगी।
घर के बाहर की सड़के सूनी पडी है दिन से रात हो गयी।
एक किराने की दुकान पर एक छोटा सा लट्टू जलता नज़र आता है बस
सड़को के गड्ढे में रात भर मेढक शोर करते है,
जैसे रत जगा कर रहे हो
पुराने नाले से पानी की तेज रौबदार आवाज़ अल सुबह तक कानों तक पड़ती है।
अबकि बार बारिश जल्द आने वाली है।
आनंद तिवारी की कलम से
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