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अलविदा-दिसम्बर
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खट्टी-मीठी यादें
अच्छे-बुरे अनुभव
सही-गलत फैसले की
गणना कर रहा है
लो यह दिसंबर भी
अब रवाना हो रहा है..
नववर्ष देहरी पर है खड़ा
अरे मानव तू क्यों
रुका पड़ा ?
काश! मैंने ..
यह कर लिया होता
काश ! मैं थोड़ा ..
'जी' लिया होता
अब इस 'काश' पर ही
तू क्यूं अटका पड़ा है
ये 'समय' क्या
कभी रुक पायेगा?
ये तो पंख लगा
उड़ जाएगा..
दिसंबर की तरह
तु भी कभी
अलविदा हो जायेगा
हर पल है कीमती
तु ये कब
समझ पायेगा
रिश्तो में पड़ी
ठंडक को कब
आंच दिखायेगा
दूर कर
गिला-शिकवा
कब
एक हो पायेगा?
चेत अब तो..
नववर्ष तेरे द्वार खड़ा है
लेकर नव -संकल्प तू
मिल उससे..
वो लम्हों का कारवां लिए
तेरे लिए ही बढ़ रहा है
देख ये दिसंबर अब
विदा हो रहा है..
- आनंद गोलछा
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