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सुना है तुम्हारे शहर में बरसात हुई है
ना मिट्टी की वो ख़ुशबू रही
ना शहर की वो सड़कें वही
अब तुम कहीं और हम कहीं।
लेकिन बारिश की इस फुहार ने
अन्दर के कई तार झनझना दिए
और अपनी वो छोटी सी छतरी याद आ गयी
जिसमें हम दोनों उस दिन
'पहले आप पहले आप' करते
आधे भीगे आधे सूखे उस पेड़ के नीचे
घंटों खड़े रहे
छतरी की डंडी को
ज़ोरों से पकड़े हुए
दोनों हाथों से जकड़े हुए
बारिश के कभी ना रुकने के इंतज़ार में।
बारिश को तो रुकना ही था
पर तुम ना रुकी उस दिन के बाद।
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