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बुद्धिनाथ मिश्र का एक गीत है:
'एक बार फिर जाल फेंक रे मछेरे
जाने किस मछली मे फिर फसने की चाह हो'
तो अजीब लगता था।
आज जब अपने पिजरे से बाहर बैठी लव बर्ड को वा
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बुद्धिनाथ मिश्र का एक गीत है:
'एक बार फिर जाल फेंक रे मछेरे
जाने किस मछली मे फिर फसने की चाह हो'
तो अजीब लगता था।
आज जब अपने पिजरे से बाहर बैठी लव बर्ड को वा
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