थक गया हूँ मैं कितना एक ज़माने से
शायद ज़िन्दगी मान जाए तुझे मानाने से
पैरों के शूल अब आँखों में भी चुभे
में लड़खड़ाया मीलों एक ठोकर खाने से
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