
Share0 Bookmarks 69 Reads0 Likes
थक गया हूँ मैं कितना एक ज़माने से
शायद ज़िन्दगी मान जाए तुझे मानाने से
पैरों के शूल अब आँखों में भी चुभे
में लड़खड़ाया मीलों एक ठोकर खाने से
अक्सर टूटा हुआ इंसान टूटा नहीं लगता
बस डरता है शाम को वापस घर जाने से
ज़ख्म जो भी मिले सब मीठे मिले
दर्द मिला तो अपनों के मरहम लगाने से
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments