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तुझे अपनी ग़ज़लों में फिर , ज़िंदा कर रहा हूँ मैं
यूँ एक बार और खुद को , शर्मिंदा कर रहा हूँ मैं
जिंदगी एक पिंजरा हैं, जिसकी सलाखें मेरी मजबूरियाँ
और अपने सपनो को, परिंदा कर रहा हूँ मैं ....
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