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एक घर के दो कमरे
एक कमरे में थाली
भर के मछली भात,
एक कमरे में
गिनी हुयी रोटियाँ।
एक घर के दो कमरे
एक कमरे में आसमान
आज़ादी के रंगो का,
एक कमरे में पायल पहनी
डर और निराशा
की गुड़िया।
एक घर के दो कमरे
एक में कोलाहल, उत्सव
अगले उत्तराधिकारी का,
दूसरे में डर, शंका
पेट में पल रहे अनहोनी का।
एक घर के दो कमरे
बस एक दीवार भर की दूरी
मगर आज़ादी में
सदियां पीछे।
एक में साम्राज्य,
सोने से भरी तिजोरियाँ
और भोग विलास का सुख
तो दूसरे में घूँघट में
लिपटे
सिकुड़े हुए पंख,
कमरे की दीवारों में
कैद,
चीखती हुई आवाज़ें,
चूल्हे की आग में
बुझती,
बदलाव की आशा।
एक घर के दो कमरे
एक में खींची लक्ष्मण रेखा,
एक ने खींची लक्ष्मण रेखा।
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