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मैं अकेला ही चला तो क्या...
तुम साथ निभाते तो
मंज़िल का सफर कट जाता...
मैं अंधेरों में पला तो क्या...
तुम रोशनी दिखाते तो
जीवन का दुख बँट जाता...
मेरे ऊपर पहरे थे तो क्या...
तुम मिलने आते तो
चेहरे का नकाब हट जाता...
मेरे जख्म गहरे थे तो क्या...
तुम मरहम लगाते तो
दर्द का एहसास घट जाता...
मेरा दिल रूठा था तो क्या...
तुम प्यार जताते तो
गिला-शिकवा मिट जाता...
मेरा हौसला टूटा था तो क्या...
तुम हिम्मत बढ़ाते तो
गम का बादल छँट जाता।
~ अम्बुज गर्ग
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