
जब भी देखता हूँ तेरी झील सी गहरी आँखों में,
नशा सा छा जाता है मेरे दिलों-जान और सांसो में...
जब भी पीता हूँ तेरे होठों के प्यालों में,
डूबकर रह जाता हूँ तेरे ही ख्यालों में...
जब भी झांकता हूँ तेरे घने रेशमी बालों में,
उलझ कर रह जाता हूँ, तेरे मासूम सवालों में...
जब भी महसूस करता हूँ तेरी सांसो की गर्मी को,
कांटे भी ऐसे लगते हैं, जैसे फूलों की नर्मी हो...
जब भी निहारता हूँ तेरे चेहरे से टपकते नूर को,
खुदा का शुक्र करता हूँ, कि तुम ही मेरा सुरूर हो...
जब भी सुनता हूँ तेरे घुंघरू की छन् - छन् को,
दिल से आवाज आती है तुम ही मेरी धड़कन हो...
जब भी खुशबू आती है तेरे महकते बदन की,
उसमें सिमट जाती है जैसे, बहार पूरे चमन की...
जब भी याद आती है तेरे लहराते दामन की,
ऐसा लगता है जैसे छाई हो घटा सावन की...
जब भी पढ़ता हूँ तेरे हाथों की लकीर को,
यकीन हो जाता है कि तुम ही मेरी तक़दीर हो ।
~ अम्बुज गर्ग
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