इश्क और सजा's image
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मुक्कमल इश्क करना था, दिल से दिल लगाकर,

इज़हार तो जानते हो, जब मर्जी कह जाते।

इज़हार तो मालूम है, पर इश्क की सजा नहीं जानते।

जुदाई की पीड़ा कहीं ना कहीं, नजर ही आती है।


साथ सफर करना था, कदम से कदम मिलाकर,

मंज़िल तो जानते हो, जब मर्जी जुड़ जाते।

मंज़िल तो मालूम है, पर मंजिल की राह नहीं जानते।

सफर की लंबी राह अकेले भी, गुजर ही जाती है।


महफ़िल में रंग भरना था, जाम से जाम टकराकर,

दोस्ती तो जानते हो, जब मर्जी कर जाते।

दोस्ती तो मालूम है, पर दोस्ती की कदर नहीं जानते।

गुरूर की चढ़ी शराब देर-सवेर, उतर ही जाती है।


मौत का स

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