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मोहब्बत में भी होने लगी है अब सौदेबाजी,
इस बाजार में बिकाऊ रिश्तों की दुकान बहुत हैं...
प्यार और बलिदान का नहीं रहा कोई मोल,
दौलत के लिए बेचने वाले अपना ईमान बहुत हैं...
सबके मकान बड़े हो गए हैं और दिल छोटे,
घर में परिवार नहीं है पर महँगे सामान बहुत हैं...
अंतरात्मा की आवाज दब गई है इस शोर में,
झूठ को चीखकर सच बताने वाली जुबान बहुत हैं...
आँखों में सपने और दिलों में अरमान बहुत हैं...
इश्क में बेवफ़ाई के हम पर इल्ज़ाम बहुत हैं...
भरी जेबों में पैसे और हाथों में जाम बहुत हैं...
इन महफ़िल की शामों में हम बदनाम बहुत हैं...
शहर में हमारे हुस्
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