
मोहब्बत में भी होने लगी है अब सौदेबाजी,
इस बाजार में बिकाऊ रिश्तों की दुकान बहुत हैं...
प्यार और बलिदान का नहीं रहा कोई मोल,
दौलत के लिए बेचने वाले अपना ईमान बहुत हैं...
सबके मकान बड़े हो गए हैं और दिल छोटे,
घर में परिवार नहीं है पर महँगे सामान बहुत हैं...
अंतरात्मा की आवाज दब गई है इस शोर में,
झूठ को चीखकर सच बताने वाली जुबान बहुत हैं...
आँखों में सपने और दिलों में अरमान बहुत हैं...
इश्क में बेवफ़ाई के हम पर इल्ज़ाम बहुत हैं...
भरी जेबों में पैसे और हाथों में जाम बहुत हैं...
इन महफ़िल की शामों में हम बदनाम बहुत हैं...
शहर में हमारे हुस्न और हुनर के कद्रदान बहुत हैं...
इस गलतफहमी में जीने वाले हम नादान बहुत हैं...
इस दुनिया में हमसे धनवान और बलवान बहुत हैं...
हमारे जैसे बस दो-चार पल के मेहमान बहुत हैं...
मेरे रास्ते में मुश्किलों के तूफान बहुत हैं...
मेरे चेहरे पर गुजरे वक्त के निशान बहुत हैं...
मेरे जीवन की अनकही दास्तान बहुत हैं...
जो हासिल ना कर सके, वो मुकाम बहुत हैं...
मेरे तन्हा दिल की राहें अब सुन्सान बहुत हैं...
मेरे सीने में दफन यादों के कब्रिस्तान बहुत हैं...
अपनो ने तो दिया है हर कदम पर मुझे धोखा,
लेकिन फिर भी गैरों के मुझपर पर एहसान बहुत हैं...
~ अम्बुज गर्ग
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