
Share0 Bookmarks 83 Reads1 Likes
अपना दर्द मैं छुपाऊँ कहाँ, सब दिखता है यहाँ,
चेहरे पर अब रौनक कहीं खिल नहीं रही,
साँस लेने मैं जाऊँ कहाँ, दम घुटता है यहाँ,
इस शहर में ताज़ी हवा कहीं मिल नही रही,
प्यास मैं बुझाऊँ कहाँ, पानी बेचता इन्सान है यहाँ,
बारिश की मीठी बूंदें कहीं पड़ नही रही,
त्यौहार मैं मनाऊँ कहाँ, महफ़िले सुन्सान है यहाँ,
मेहंदी की लाली हाथों में कहीं चढ़ नहीं रही,
मेला मैं घूमकर आऊँ कहाँ, रास्ते बंद हैं यहाँ,
खुशियों की रोशनी कहीं दिख नहीं रही,
गले अपनों को मैं लगाऊँ कहाँ, दोस्त चंद हैं यहाँ,
दिलों में बढती दूरियाँ कहीं मिट नहीं रही।
~ अम्बुज गर्ग
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments