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तुम्हीं तो हो नज़र में और इन आंखों में ज़िंदा क्या ?
उड़ना भूल गर जाए तो परिंदा क्या ?
जो रहनुमा ना हो तुम्हारे पते का ,
तेरे शहर में वो ठहरा बाशिंदा क्या ?
मेरा ही चाहना गुनाह है तुझको ,
अपनी खूबसूरती पर इतना शर्मिंदा क्या ?
लग गए जिस्म से गर खेलने तुम भी ,
फ़िर क्या तू और वो दरिंदा क्या ?
दीवारें तपने लग जाए लू के तपन से फ़िर ,
कैसा मकां तेरा और मेरा घरौंदा क्या ?
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