
Share0 Bookmarks 58 Reads0 Likes
बीत गए हैं दिन कितने,
और बीत गई है कितनी रात,
मैं था चुप तो बातों की,
आप ही कर लेते शुरूआत,
एक पहल से ही जुड़ जाते हैं सिरे,
ज़रूरी नहीं हर रोज़ मुलाकात,
वैसे ही ज़िंदगी छोटी है बहुत,
कि मुअ’य्यन कहां है किसी का साथ,
माना कि एक अरसे से मैंने,
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments