
Share0 Bookmarks 28 Reads0 Likes
लगता नहीं इस जहाँ का मैं,
किसी और ग्रह का नज़र आऊं,
समझ के परे हैं बातें यहां की,
बेवजह मैं जिनमें उलझता जाऊं,
ऐसा तो कोई गिला नहीं पर,
मन ना यहां मैं लगा पाऊं,
जो निकलूं ढूंढने कमी किसी में,
तो दोष बस ख़ुद ही में पाऊं,
जीवन है एक खेल अगर तो,
खेल ये मुझसे खेला नहीं जाता,
बहुत कुछ है यहां पर ऐसा,
जो अब मुझसे झेला नहीं जाता,
चाहे जहां भी रहूं मगर,
इस जहाँ में फ़िर ना आऊं,
दिन बीतते इसी आस में बस,
कि शरीर छूटे और मैं जाऊं।
कवि- अम्बर श्रीवास्तव।
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments