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उम्र हो गई पैंतीस के पार,
बस बड़प्पन आना बाकी है,
समझदारी तो फिर भी आ गई,
बस लड़कपन जाना बाकी है,
रंग बदलती ये ज़िंदगी यहां,
कभी खुशहाल तो कभी ग़मग़ीन है,
हर दौर गुज़र जाता आसानी से,
कि अपनी तबियत ज़रा रंगीन है,
देखे हैं कई ऐसे भी जिनका,
बड़ा ही तंग मिज़ाज है,
डरते वो हमेशा
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