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सुनो,
ये संसार औरंगजेब का ह्रदय नहीं है, और ना ही ये हिटलर के पत्थर रुपी ह्रदय के समान है, बल्कि ये संसार अशोक का ह्रदय है , द्रवित हो उठता है संसार का ह्रदय जब बर्बरता की सीमा लाँघ दी जाती है , फिर लिखे जाते हैं शान्ति के संदेश और अन्ततः जीत ,मानवता की होती है... ...©शुभम दीक्षित
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