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हवाओं मैं तुम्हारी गवाही मांगता हूँ

Amar DixitAmar Dixit February 16, 2023
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हवाओं मैं तुम्हारी गवाही मांगता हूँ
चश्मदीदों से इंसाफ की दुहाई मांगता हूँ।

क्यूँ सजदे में सर झुकाऊँ मैं तेरे आगे
मैं मेहनत के हक़ की कमाई मांगता हूँ।

मुझ में और ख़ुदा में कोई फ़र्क़ है नहीं 
वो इबादत मांगता है मैं ख़ुदाई मांगता हूँ।

तसव्वुर ही सही तेरे होने का हमको
तुझे ख़ुद में बसाने की गहराई मांगता हूँ।

ना सूरज से रौशनी ना चाँद से चाँदनी
जो साथ रह सके वो परछाई मांगता हूँ।

भले मुफलिस में गुज़री है जिंदगी मेरी 
लेकिन 'अमर' मैं मौत राजशाही मांगता हूँ।

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