
Share0 Bookmarks 13 Reads0 Likes
आओ नफ़रतों की ये बिजलियाँ छोडें
फूल मुरझा रहे हैं कुछ तितलियाँ छोडें।
जहाँ दिल-ओ-दिमागों में है खौलता ज़हर
चुपचाप हम ,वो लोग, वो बस्तियाँ छोडें।
भगवान की संतान हो भगवान की खातिर
इंसानियत के आगे अपनी मनमार्जियां छोडें।
इस नये ज़माने से यही दरख्वास्त करता हूँ
भविष्य की खातिर अतीत की तल्खियाँ छोडें।
समस्याएं गिनाने से हल नहीं निकलता है
कुछ अच्छाइयाँ सीखें कुछ बुराइयां छोडें।
'डिवाइड एंड रूल' की षड़यंत्री सभाओं में
भगत,अश्फ़ाक़,बिश्मिल की पर्चियाँ छोडें।
संसद में शोर मचाने वालों से गुज़ारिश है
अमन के वास्ते अब ये अपनी कुर्सियाँ छोडें।
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments