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आओ नफ़रतों की ये बिजलियाँ छोडें
फूल मुरझा रहे हैं कुछ तितलियाँ छोडें।
जहाँ दिल-ओ-दिमागों में है खौलता ज़हर
चुपचाप हम ,वो लोग, वो बस्तियाँ छोडें।
भगवान की संतान हो भगवान की खातिर
इंसानियत के आगे अपनी मनमार्जियां छोडें।
इस नये ज़माने से यही दरख्वास्त करता हूँ
भविष्य
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