Share0 Bookmarks 48780 Reads0 Likes
शिकायत अब जो बिछडे हैं अमर,
तो बिछडने की शिकायत कैसी ।
मौत के दरिया में उतरे तो जीने की इजाजत कैसी ।।
जलाए हैं खुद ने दीप जो राह में तूफानों के,
तो मांगे फिर हवाओं से बचने की रियायत कैसी ।।
फैसले रहे फासलों के हम दोनों के गर
तो इन्तकाम कैसा और दरमियां सियासत क
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments