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हृदय के हिन्दसागर में, अमर के गीत बाकी हैं।
उठें जो भी तरंगों पर ,तुम्हारा नाम साकी है।
तेरा इतिहास हर भूगोल, मेरे सामने "अमर"।
सुनाया गीत जो मैंने ,सुरीली एक झाँकी है।
चलो आओ कहीं बैठें ,बहुत सी बात बाकी है।
नहीं यह जिन्दगी हैं अपनी,
कुछ वक्त मुझको साथ रहनी है।
मिटा डालो सब शिकवे गिले ,
न अफसोस रह जाए।
पड़ोगे तुम भी गफलत में ,
न मेरा दोष होगा।
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