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✍️अमर त्रिपाठी

हम से जाओ न छुपाकर आँखें,

यूँ शर्माओ ना झुका कर आंखें,


ख़ामोशी दूर तलक फैली है

बोलिए कुछ तो उठाकर आँखें

इतना क्यों शरमा रही हो झुका कर आंखें,

क्यों इतना रेत में वीरानियां फै

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