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जल्दी आना..
सुनों हवाओं मिलें जो अमर,
उनको दिल का पता बताना।
ज़ख्म हमारे दिल पर जितने,
पांवों के छाले दिखलाना।
बिखरे केश होंठ ये सूखे,
राह जोहतीं आँखें मेरी।
मेह बरसते जैसे नैना,
और टूटती साँसें मेरी।
प्यासे प्राण पूछते मेरे,
ओ परदेशी कब हो आना।
नमी सोख ले दे बादल
को,कहना पी के देश बरसना।
विरह ताप से जलते तन को,
ठंढक को ना पड़े तरसना।
क्या कैसी हालत है उनकी,
देख समझ हमको समझाना।
आगे से कुछ मेघ आ रहे,
ठंढी - ठंढी हवा चली है।
शायद ये आहें हैं उनकी,
उन आँखों की नमी मिली है।
पिंजड़ा छोड़ उड़न चँह सुगना,
कहना कि जल्दी घर आना.।
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