
✍️ अमर त्रिपाठी
आज बिगड़े हैं क्या जो हालात मेरे, लोग दौलत की दुहाई देने लगे हैं,
कल तक जो मेरे शोहरत मेरे रुतबे से अपनी पहचान बना रहे थे,
आज वही मेरा नाम लेने से कतरा रहे हैं,
दौलत रुतबा शोहरत किसी की जागीर नहीं साहब,
आज मेरा है तो कल किसी और का होगा,
वक्त के साथ सब कुछ बदल जाएगा, उस दिन मगरूर लोगों का चेहरा बेनकाब हो जाएगा।
मैं भी देख लूंगा उस दिन ए गमे जिंदगी,
तेरे अंदर कितनी हिम्मत है,
जो मेरे हौसले को रोक देगी तू,
मैं तो पत्थर की लकीर हूं,
जो तूफानों के थमते फिर वहीं पर मिलता हूं,
तू उन लोगों का इंतहा जा कर ले,
जो वक्त के साथ मुखौटा बदल लेते हैं,
मैं तो वो मुसाफिर हूं,
जो वक्त की प्रवाह नहीं करता,
चलता हूं अपनी मस्ती में, सबको साथ लेकर,
ए गमे जिंदगी तू कहीं और जा,
मैं तो मरहम हूं,सब के दर्द हर लेता हूं,
वक्त कैसा भी हो, मैं सबके साथ रहता हूं,
क्योंकि मैं अमर हूं, मेरी यही पहचान है,
जो सब के दर्द को बांट लेता हूं।।
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