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दुनिया में समानतायें बहुत हैं
गरीबी हरजगह अभिशाप है
धार्मिक अंधता,अकड़ता सबजगह है
काबिलियत का पैमाना चाटुकारिता ही है
हराम की रोटी,किसी का हक खाना भी
सबजगह बराबर है
अशिक्षा का अंधकार सबजगह है
काश दुनिया में ये समानतायें ना होती
विविधताओं,विचारों वाली असमानताएं ही होती
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