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औरत,
इक चिराग में बाती की तरह है ,
जो चिराग की आधार है,
जिसकी रोशनी से अंधेरे खत्म होते हैं
जिसतरह जलती हुई लौ और तेल के बीच
इक बाती सामंजस्य रखती है
अगर बाती ही ना हो
तो ये सामंजस्य असंतुलित हो जायेगा
इक चिराग फिर इक असंतुलित
आग बन जायेगा ।
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