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कभी कभी खुद ही खुद को समझना पड़ता है
प्रेम गीत ऊधौ को व्रज में गाना पड़ता है
दिन भर दर दर भटक रहे जो उदर पूर्ति के चक्कर में
शाम ढले हर पक्षी को घर आना पड़ता है॥
महा सिन्धु से गूढ़ ज्ञान के जो मोती चुन लाता है
जीवन के आदर्शों का जो सम्यक ज्ञान कराता है
नर सेवा नारायण सेवा का है जिसमें भाव प्रबल
अमल कमल सा मन के मानसरो
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