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इश्क़ के गुनहगार तुम भी थे और हम भी
सजा बस एक ने पाई ये कैसा इंसाफ है?
निकले थे साथ में घर से तुम भी और हम भी
घर बस तुमने बसाया ये कैसा मज़ाक है?
लौट कर घर पहुंचे थे तुम भी और हम भी
जगह बस एक ने पाई ये कैसा न्याय है?
कूदे थे साथ में छतसे तुम भी और हम भी
मौत बस एक को आई ये कैसा हिसाब है?
सिरहाने तकिया लगाया था तुमने भी हमने भी
नींद बस एक ने खोई ये क्या बात है?
उस ख्वाब में मौजूद तुम भी थे और हम भी
सुबह बस एक ने देखा ये कैसे हालात है?
बिछड़ के साथ में रोए तुम भी थे और हम भी
अश्क सिर्फ एक के निकले ये कैसा एहसास है?
सोचा था फिर न करेंगे मोहब्बत तुमने भी और हमने भी
आँख फिर से थी लड़ गयी ये कैसे ज़ज़्बात है?
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