
मैं बंजारा, मैं आवारा, फिरता दर दर पर ना बेचारा
ना मन पर मेरा ज़ोर कोई, मैं अपने मन से हूँ हारा
ठिठक नहीं कोई ठौर नहीं, आगे बढ़ने की होड नहीं
कोई मेरा रास्ता ताके, जीवन में ऐसी कोई और नहीं
ना रिश्ता है ना नाता है, बस अपना खुद से वादा है
जब तक जिंदा हूँ चलना है, बस यायावर ही रहना है
जब सबने हांथ बाढ़ाया था, तब मैंने हीं ठुकराया था
अपने पथ का चुनाव किया, मैंने सूख का परित्याग किया
हाव भाव से फक्कर हूँ, घुल जाऊँ तो शक्कर हूँ
स्वाद मेरा पहचान गया, जो मेरे मन को जान गया
मैं अपनी धुन में रहता हूँ, बस अपने मन की करता हूँ
सुन लेता हूँ जो कहते हैं, पर मूंह से कुछ ना कहता हूँ
जो लोग मुझे समझाते है, लोक लाज बतियाते हैं
अपने मन के एक कोने में, मेरे जीवन को ललचाते हैं
मैंने हीं दुनिया देखी है, हर आंच पर रोटी सेकी है
चाहे तन मेरा साफ ना हो, पर मन में अब भी नेकी है
हम जहां कहीं बस जाते हैं, जो मिल जाता है खाते है
पर अपनी लालच के खातिर, दूजे का हक़ नहीं खाते हैं
बस सफर ही मेरा जीवन है, हर शहर से मेरा बंधन है
रुक गया तो मैं मर जाउंगा, ना मुक्त कभी हो पाउंगा
हर झांकी देखनी है मुझको, हर तुंग चढना है मुझको
जो इस जीवन मे बचा रहा, उस जीवन में है करना मुझको
रोके से मैं ना रुक पाउंगा, गृहस्थ नहीं बन पाउंगा
तुम मुझको बंधन मे ना बांधों, मैं न्याय नही कर पाउंगा
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