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उल्का पिंड

Aman SinhaAman Sinha March 3, 2022
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आसमान से टूटा तारा उल्का बनकर दौड़ चला

अन्धकार के महाशून्य में पाने अपनी राह चला

घर छूटने का तो दुःख था साथ टूटने का ग़म भी

अंतिम बार जो मुड़के देखा उसके नैन हुए नम भी


उसके वेग से महाशून्य में ज़ोर की गर्जन फ़ैल गयी

मिलों तक फिर ऊर्जा फैली अंधियारे को लील गयी

अभी जन्म हुआ था उसका चाल में अभी लड़कपन था

सालो बीते चलते चलते अब आने वाला यौवन था


सिर भागता था आगे उसका पूँछ दूर तक फैली थी

पीछे फैली कई मील तक तुक्ष पिंड की रैली थी

कितनी दूर अभी जाना है इसका कुछ आभास नहीं

गंतव्य तक जा पहुंचेगा इसमें कोई अट्ठास नहीं


युगों बीते चलते चलते अब बुढ़ापा आ पहुंचा

बड़े कि सी तारे के कक्षा में ये अग्नि पिंड जा पहुँचा

उसके आकर्षण में आकर अपना वेग ये खो बैठा

अनजाने में उस तारे के कई परिक्रमा कर बैठा

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