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सावन सूखा बीत रहा है

Aman SinhaAman Sinha November 14, 2022
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सावन सूखा बीत रहा है, एक बूंद की प्यास में 

रूह बदन में कैद है अब भी, तुझ से मिलने की आस में

 

जैसे दरिया के लहरों, में कश्ती गोते खाते है 

हम तेरी यादों में हर दिन, वैसे हीं डूबे जाते है

 

जाने कितने मौसम बदले, रंगत बदले चेहरे बदले 

सिलवट तेरी टूट ना जाए, हम एक करवट भी ना बदले 


जैसे कोई उड़ता पंक्षी, पिंजरे में फंस कर रह जाए 

जैसे कोई मछली जल बीन, तड़प-तड़प कर मर जाए

 

जैसे सीलन भरे कमरे में, धूप अचानक आ जाए 

बुनियादी दीवारों पर फिर, रंगत कोई छा जाए 

जैसे दलदली जमीन के तल पर, ठोस कोई आधार मिले 

मैं भी पाँव जमा लूँ अपने, जो मुझको तेरा प्यार मिले 

                 

जैसे दूर मंज़िल का राही, अपने पथ से भटका हो 

जैसे कोई भारी सा फ़ल, पतली डाली से लटका हो 

                

जैसे किसी बड़ी किवाड़ पर, छोटा ताला पड़ा रहे 

जैसे किसी पहलवान के आगे, नौसिखिया कोई अड़ा रहे 

                     

मैं भी तेरे प्रेम अगन में निश-दिन कैसे जलता हूँ

कैसे अपने हांथों से, छालों पर बर्फ मैं मलता हूँ 

                  &nb

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