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जब मैं चलता हूँ तो साथ साथ वो भी चलती है
जहां मैं मुड़ा कहीं मेरे साथ वो भी मुड़ जाती है
रूप रंग में हाव-भाव में बिल्कूल मेरे जैसी है
मैं तो दीखता हूँ हर जगह वो कहीं-कहीं छुप जाती है
सूरज हो या चाँद फलक पर इसको फर्क नही पड़ता
खोली हो या हो कोई हवेली इसको डर नहीं लगता
आगे पीछे ऊपर निचे ये कही भी हो सकती है
टेढ़ी मेढी छोटी मोटी ये कैसी भी हो सकती है
ब्राह्मण हो या राजपूत हो या फिर कोई हरिजन हो
चाहे कोई हो गोरा काला पराया या
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