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सर झुका दूँ तेरे दर पर, ये मुझे करना नहीं
जान दे दूं हंस के लेकिन डर के है मरना नहीं
हाँथ जोडू पैर पकड़ूँ न तेरी मिन्नत करूँ
अपने ख़ातिर तेरे आगे डर के न तौबा करूँ
तू ने ही बनाया सबको जो ये चाहे सोच ले
तेरे ही लिखे पर फिर क्यों तेरा ही ना बस चले
तू अगर अगर है जन्मदाता सबका पालन हार है
जो दबे हैं उनपर दुःख का क्यों तोड़ता पहाड़ है?
मैं ना जाऊँ मंदिरों में तेरी पूजा के लिए
ना जलाऊं आरती में घी के एक भी दिए
क्यूँ चढ़ाऊँ तेरे पग पर फूलों की मालाओं को
क्यों न खुद ही शांत कर लूँ अपनी मन की ज्वालाओं को
मैंने तूझको ना बुलाया जब भी मैं लाचार था No posts
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