
इश्क के बाज़ार में ये फ़रमान निकला है
मेरे सिने से दिल जैसा जो सामान निकला है
ना जाने क्यों आज हवाओं का रुख रोबीला हो गया
ये दिल है या अरमानो का कोई तूफान निकला है
जरा रुको धड़कनों को सम्हल जाने दो
भीड़ बड़ी है यहाँ जरा तो सुस्ताने दो
कब तक छिपता रहेगा ये नक़ाब के पिछे
जरा पानी तो डालो, चेहरे को धूल जाने दो
चाहे जितना भी छिप जाए मोहब्बत ढूंढ ही लेगा
जलाएगा ये औरों को भी खुद को भी ये जलेगा
ना देगा तोहमत ये गैरों पर टूटकर भी ये हँसेगा
कहेगा ना कभी कुछ भी जुबा को बंद ही रखेगा
जिसे मिल जाए लौटा दे पता हम बताते हैं
क्या इसपर ईनाम रक्खा चलो ये भी दिखाते हैं
ये चांदी है या सोना है, या अनमोल रत्न है कोई
वजह है क्या बुलाने की चलो ये भी समझाते है
ये बागी है बे शरम है खुद हीं ये बताता है
जुबा गर बंद हो फिर भी ये आँखों को भड़काता है
ना इसको फिक्र है कोई ये आंधी किसको ले डूबे
नज़र जितना भी फेरो तुम ये नज़रों की लड़ाता है
ये क़ैदी है अपनी मर्ज़ी का कोई भी बांध न पाया
वहीं जाकर अटकता ये जहां है प्यार का साया
कोई दे लाख लालच भी इसे दौलत और शोहरत का
कभी लौटा नही उस ओर जिसे है छोड कर आया
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