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इश्क के बाज़ार में ये फ़रमान निकला है
मेरे सिने से दिल जैसा जो सामान निकला है
ना जाने क्यों आज हवाओं का रुख रोबीला हो गया
ये दिल है या अरमानो का कोई तूफान निकला है
जरा रुको धड़कनों को सम्हल जाने दो
भीड़ बड़ी है यहाँ जरा तो सुस्ताने दो
कब तक छिपता रहेगा ये नक़ाब के पिछे
जरा पानी तो डालो, चेहरे को धूल जाने दो
चाहे जितना भी छिप जाए मोहब्बत ढूंढ ही लेगा
जलाएगा ये औरों को भी खुद को भी ये जलेगा
ना देगा तोहमत ये गैरों पर टूटकर भी ये हँसेगा
कहेगा ना कभी कुछ भी जुबा को बंद ही रखेगा
जिसे म
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