Share0 Bookmarks 48543 Reads0 Likes
काँप उठता है बदन और धड़कने बढ़ जाती है
शब्द अटकते है जुबां पर साँसे भी थम जाती है
लाल हो जाती है आंखें भौह भी तन जाती है
सैकड़ो ख्याल मन को एक क्षण में घेरे जाती है
खून बेअदबी से तन में फिर बेधड़क है भागता
नींद से आँखे भरी पर रात भर है जागता
मन किसी भी काम में फिर कहीं लगता नहीं
अपने हीं विचार पर ज़ोर तब चलता नहीं
गर्मियों के दिन मे भी ये जिस्म ठंडा हो जाता है
दिखता तो है ज़िंदा लेकिन जीते-जी मर जाता है
बेखयाली बदहवासी उसपर सिहरता बदन
तन से वो जगता दिखे है सो गया है उसका मन
<
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments