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मैं जिया हूँ दो दफा और दो दफा हीं मैं मरा हूँ
पर अधूरी ख्वाहिशो संग हर दफा हीं मैं रहा हूँ
चाह मेरी जो भी थी वो मेरे पास थी सदा
पर मेरे पहुँच से देखो दूर थी वो सर्वदा
राह जो चुनी थी मैंने पूरी तरह सपाट थी
पर मेरे लिए हमेशा बंद उसकी कपाट थी
मैंने जो गढ़ी इमारत दीवार जो बनाई थी
उसकी नींव में हमेशा हो रही खुदाई थी
मैं चला था साथ जिसके मंज़िलों के प्यास में
वो रहा था पास मेरे किसी दूसरे के आस में
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