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मैं जताना जानता तो बन बैरागी यूं ना फिरता
मेरे ही ख़िलाफ़ ना होता आज ये उसूल मेरा
मैं ठहरना जानता तो बन के यूं भंवरा ना फिरता
मेरे पग को बांध लेता फिर कोई अरमान मेरा
मैं बताना जानता तो दाग़ लेकर यूं ना फिरता
आज मेरे साथ होता धौला सा दामन वो मेरा
मैं हँसाना जानता तो मुंह छुपाकर यूं ना रोता
आज फिर बिकता नहीं सिक्कों में यूं ईमान मेरा
मैं दिखाना जानता तो राख़ मेरा मन ना होता
आज मेरे साथ होता आस्थियों का भाँड़ मेरा
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