
मैं जताना जानता तो बन बैरागी यूं ना फिरता
मेरे ही ख़िलाफ़ ना होता आज ये उसूल मेरा
मैं ठहरना जानता तो बन के यूं भंवरा ना फिरता
मेरे पग को बांध लेता फिर कोई अरमान मेरा
मैं बताना जानता तो दाग़ लेकर यूं ना फिरता
आज मेरे साथ होता धौला सा दामन वो मेरा
मैं हँसाना जानता तो मुंह छुपाकर यूं ना रोता
आज फिर बिकता नहीं सिक्कों में यूं ईमान मेरा
मैं दिखाना जानता तो राख़ मेरा मन ना होता
आज मेरे साथ होता आस्थियों का भाँड़ मेरा
मैं बुलाना जनता तो राह से मैं यूं ना भटकता
संग मेरे रहता फिर हँसता हुआ संसार मेरा
मैं हराना जानता तो जीत मेरे वश मे होती
फिर किसी भी खेल में यूं मेरा निश्चय ना डिगता
मैं सम्हलना जानता तो आज यूं मदिरा ना पीता
फिर कोई होता कहीं पर छोटा सा मकान मेरा
मैं जगाना जानता तो मेरी किस्मत यूं ना सोती
फिर कहीं पर मुझे मिल जाता खोया सा सम्मान मेरा
मैं बचाना जानता तो अब तलक कुछ कर भी लेता
बाप कहते न झिझकता कोई भी संतान मेरा
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