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गुमसुम सा रहता हूँ, चुप-चुप सा रहता हूँ
लोग मेरी चुप्पी को, मेरा गुरूर समझते है
भीड़ में भी मैं, तन्हा सा रहता हूँ
मेरे अकेलेपन को देख, मुझे मगरूर समझते हैं
अपने-पराये में, मैं घुल नहीं सकता
मैं दाग हूँ ज़िद्दी बस, धूल नहीं सकता
मैं शांत जल सा हूँ, बड़े राज़ गहरे है
बहुरूपिये यहाँ हैं सब, बडे मासूम चेहरे है
झूठी हंसी हँसना,आता नहीं मुझे
आँसू कभी निकले, परवाह नहीं मुझे
कोई कहेगा क्या, ये सोचना है क्युं
फिजूल बातों से, भला डरूँ मैं क्युं
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