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ले चल अपने संग हमराही, उन भूली बिसरी राहों में
जहां बिताते थे कुछ लम्हे हम एक दूजे की बाहों में
चल चले उन गलियों में फिर थाम कर एक दूजे का हाथ
क्या पता मिल जाए हमको फिर वो जुगनू की बारात
जहां चाँद की मद्धिम बुँदे वादी से छन कर आती है
और ताल की जल पर पड़ कर चांदी सी छितरा जाती है
जहां डाल पर तोता मैना बातें मीठी करते हैं
जहां चाँद को देख चकोरे, आंहें भरते रहते है
वहीं झील में नांव चाले तो मांझी गान
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