लोग वही है बर्ताव नया, मिलने का अंदाज नया
पहले चिपके-चिपके चलते थे, अब दूरी का है अवतार नया
हाय-हैलो सब भूल गए है, अब हाथ मिलना भूल गए है
अब दूर से बातें करते है , सब गले लगाना भूल गए है
जब से हम घर पर बैठे थे, छुट्टी से ऐंठे बैठे थे
पहले सी अब कोई तलब न थी, मन पर काबू कर बैठे थे
बस कुछ दिन मे हीं ये हाल हुआ, तन-मन मेरा बेहाल हुआ
गठीला शख्त बदन मेरा, अदरक जैसा बदहाल हुआ
फुर्ति भी वैसी रही नहीं, कुर्सी की आदत रही नहीं
लैपटाप और की-बोर्ड की, ऊंगली की यारी रही नहीं
अब सपने देखा करते है, थियेटर के और बगिचे के
मन ही मन मे ललचाते है, खाने को खाने होटल के
पहले जो शिकायत करते थे, तुम मिलने भी नहीं आते हो
वही लोग कहते है अब, तुम मिलकर क्यों बतियाते हो
जिनको भी पहले उलझन थी, घूँघट से पर्दादारी से
वही बखान अब करते है, मास्क से अपनी यारी के
कैसे बदली ये सोच अहो, क्यों बदला है अप्रोच कहो
जो भीड़-भाड़ के आदि थे, रहते कमरे के ओट अहो
अब मॉल मे होती भीड़ नहीं, किसी खेल मे हार-जीत नहीं
आदत बदली दुनिया ने तो, इस रोग की होगी हार अहो
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