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पहली बार उसको मैंने, उसके आँगन में देखा था
उसकी गहरी सी आँखों में अपने जीवन को देखा था
मैं तब था चौदह का वो बारह की रही होगी
खेल खेल में हम दोनों ने दिल की बात कही होगी
समझ नहीं थी हमें प्यार की बस मन की पुकार सुनी
बचपन के घरौंदे ने फिर अमिट प्रेम की डोर बुनी
उसे देखकर लगता था जैसे बस ये जीवन थम जाए
बस उसकी भोली सूरत पर नज़रें मेरी ठहर जाए
कई और थे उसके साथी पर उसने बस मुझको देखा
उसके मन से मेरे मन तक थी कोई एक अंजानी रेखा
खेल खेल में हाथ पकड़ कर फेरे कितनी बार लिए
प्यार हमारा सदा रहेगा वादें कई हजार किए
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