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क्या पता था ?
एक दिन ऐसा भी आएगा
पूरे ब्रह्मांड पर अपना हक़
जताने वाला इंसान एक दिन
खुद चार दीवारी मे क़ैद हो जाएगा
किसी ने ना सोचा होगा
ऐसा भी हो जाएगा
दुनिया चलाने का दावा करने वाला
एक तिनके से डर जाएगा
काबू सब पर पा लिया
सोच जब ये अपना लिया
जिसने पर्वत को भी अपने
कदमों पर झुका लिया
सागर की गहराई नापी
अंतरिक्ष के अंदर तक की झांकी
उस इंसान को एक विषाणु ने है
घुटनों पर टीका दिया
आज वो ये समझ चुका है
अहम ये उसका बढ़ चुका है
ईश्वरीय कण ढुंढने वला
उसके सरण मे पड चुका है
मानव जब-जब हारा है
ईश्वर ने दिया सहारा है
लेकिन संकट टल जाते हीं
मानव ने पल्ला झारा है
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