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अंजाना सफर तनहाई का डेरा
उदासी का दिल मेंं था उसके बसेरा
साँवली सी आंखो पर पालकों का घेरा
भुला नहीं मैं वो चमकता सा चेहरा
आंखे भरी थी और लब सील चुके थे
दगा उसके सीने मे घर कर चुके थे
था कहना बहूत कुछ उसको भी लेकिन
धोख़े के डर से वो लफ्ज जम चुके थे
हाले दिल चेहरे पर दिखता था यू हीं
के ग़म को छुपाने की कोशि श नहीं थी
दिल चाहता तो था संग उसके चलना
मगर साथ चलने की कोशि शनहीं थी
कहा कुछ नहीं पर समझा दिया सब
ना बाकी रहा था कुछ भी कहीं अब
बेबस उस हंसी की होठों पर रख के
वो फिरती रहे
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