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सुबह निंद से जागा तो मैं काँप उठा
सर्दी कड़क की थी पर मेरे तन से भांप उठा
एक जकड़न सी थी पूरे बदन मे मेरे
हाथ ऊपर जो उठाया तो बदन जाग उठा
पहले कभी मुझे ऐसा लगा ही नहीं
मर्ज़ हल्का हीं रहा कभी बढ़ा ही नहीं
लगा ये रोग मुझे कैसे क्या बताऊँ मैं
कभी बदनाम उन गलियों मे मैं गया ही नहीं
थोड़ी सर्दी थी लगी और ये तन तपता था
ज़रा बदन भी मेरा आज जैसे दुखता था
सर दबाया मैंने खूब मगर फर्क पड़ा हीं नही
एक ऐंठन सी लगी और गला सूखता था
गया मैं दौड़कर गोली के लिए दवाखाने मे
सुबह से पाँच दफा होकर आया मैं पैखाने मे
आँख कुछ यूं जल रही की कुछ दिखे कैसे
जंग सा लग गया हो जैसे बदन के कारखाने मे
हुआ कुछ यूं की हाल क्या हम कहे तुमसे
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