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खुद से रू-बरू होने की सूरत तो बने
कभी दिल मैं भी खोल सकूँ महूरत तो बने
भरा है लावा दिल मे इतना, पिघल जाऊँ मैं
कभी फटकर निकल जाऊँ ऐसी नौबत तो बने
है यूं तो कई बात जो है सुनानी तुमको
नज़रों से तेरे गिरकर नहीं रहना मुझको
कैसे लौटा के ले आऊँ अपने पास तुझे
फिर पहले सा वही जज़्बात जगाना है मुझे
तेरी हर जिल्लत है मंजूर मुझे
दिये है जो भी इल्ज़ाम सब है कुबूल मुझे
तुझे खो देने का डर ही काफी है मेरे लिये
बिना तेरे और जीना नहीं है मंजूर मुझे
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